!! शिक्षा का व्यवसायीकरण !!

दिनांक: 17-04-2017 (1)
घोडासहन (मोतिहारी) 

सरकारी दावों के बावजूद निजी विद्यालयों में छात्रों व अभिभावकों का शोषण जारी है।  शिक्षा के इस दौर में अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे-से-अच्छे विद्यालयों में नामांकन कराने की पुरजोर कोशिश करते हैं। फिर भी  शिक्षा के व्यवसायीकरण के इस दौर में  शिक्षा कोसो दूर है। उपर से छोटे-छोटे बच्चों पर प्रतिवर्ष नए-नए प्रकाशन की मोटी-मोटी किताबों का बढता बोझ। स्कूल जाते छोटे बच्चों का बस्तों के बोझ तले झुका कमर इसकी ओर स्पष्ट इशारा करता है। हां ये व्यवसायिक विद्यालय नए सत्र में नए-नए शिक्षक व नई-नई व्यवस्थाएं देने का वादा जरूर करते हैं। परन्तु कुछ माह बाद ही अभिभावकों का नशा काफूर हो जाता है। जहां सरकारी विद्यालयों में कक्षा 1 के बच्चों के लिए हिन्दी व गणित की किताबें हैं और अंग्रेजी की पढाई तीसरे कक्षा से होती है। तो वहीं निजी विद्यालयों में कक्षा 1 से पहले ही हिन्दी, गणित के अलावें अंग्रेजी, विज्ञान, समाज, कम्प्यूटर के साथ-साथ जेनरल नॉलेज भी पढाई जाती है। कुछ निजी विद्यालय तो किताब कॉपी भी अपने विद्यालय में ही रखकर मनमानी मूल्य पर बेंच छात्रों व अभिभावकों का शोषण  करते हैं। इतना ही नही छात्रों को जुता-मोजा भी विद्यालय से ही लेने के लिए बाध्य करते हैं। मजे की बात तो यह है कि जो विद्यालय छात्रों को बाहर की चीजे खाने को मना करते हैं, उन्ही के विद्यालय परिसर में ही विद्यालय का कैन्टीन भी चलता है। जिसके समानों का कोई मानक नही है। इस संबंध में पुछे जाने पर प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी योगेन्द्र राय शर्मा बताते है कि अब तक इसको लेकर कोई शिकायत नही आई है। यदि शिकायत आती है तो वरीय पदाधिकारियों को कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा।
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